स्पेस युग की शुरुआत से लेकर अबतक हम इंसानो ने कई सारे Probes और Spacecraft को दूसरे ग्रहो , सौरमंडल के आखिरी छोड़ और उससे भी परे भेजने में सफलता हासिल की है | इन Probes और Spacecraft को बनाने में कई सालो का समय और सैकड़ो वैज्ञानिको की Research और मेहनत लगती है | इन मिशनों से जुड़े हुए वैज्ञानिक पूरी कोशिश करते है की ये Missions ज्यादा से ज्यादा समय तक काम करते रहे | पर कई बार ऐसी स्तिथिया बन जाती है जिसकी वजह से वैज्ञानिको को जान बूझकर इन मिशनों को दूसरे ग्रहो या उनके Moons पर पर नष्ट करना पड़ता है | ऐसे में आज हम कुछ ऐसे मिशनों के बारे में जानेंगे जिसने दूसरे ग्रहो पर अध्यन करते हुए अपना दम तोड़ दिया |
दोस्तों दूसरे ग्रहो और उनके Moons का अध्यन करने के लिए भेजे गए कुछ Probe मिशनों को इसलिए Destroy कर दिया जाता है ताकि उस ग्रह और उनके चन्द्रमाओ में पनप रहे जीवन को किसी प्रकार के बाहरी हस्तछेप से बचाया जा सके | वही कुछ Probe मिशनों को जान बूझकर उस ग्रह पर मरने के लिए धकेल दिया जाता है ताकि वह अपने आखिरी समय में भी उस ग्रह के Atmosphere और Internal Structures के बारे में महत्वपूर्ण जानकारिया जुटा सके | ऐसे में हम एक एक कर ऐसे ही कुछ मिशनों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे |
1. Galileo Mission Jupiter – 2003
Galileo अमेरिकी Space Agency NASA का एक Orbiter Mission था जिसका मुख्या मकशद Jupiter ग्रह के Orbit में रहकर इस ग्रह के Composition , Structure और उसके Moons का करीबी से अध्यन करना था | Galileo Mission को 1989 में Launch किया गया था जो की करीब 6 सालो की लम्बी यात्रा के बाद सन 1995 में Jupiter ग्रह के Orbit में सफलतापूर्वक दाखिल हुआ |
Galileo Mission का Expected Lifespan केवल 2 सालो का था, पर NASA के वैज्ञानिको के सूजबूझ के चलते इस Mission को Jupiter ग्रह के Orbit में करीब 8 साल पुरे हो चुके थे | पर 2003 की शुरुआत में Galileo Spacecraft का Fuel ख़त्म होने की कगार पर पहुंच चूका था, ऐसे में वैज्ञानिको को इस Spacecraft को लेकर एक बेहद ही कठिन फैसला लेना था, की क्या इस Spacecraft ऐसे ही Jupiter ग्रह का चक्कर लगाने के लिए छोड़ दिया जाए या फिर इसे Jupiter ग्रह के Orbit में जलाकर नष्ट करदिया जाए |
Galileo Mission ने अपने अंतिम दिनों में Jupiter ग्रह के Moon Europa में मौजूद Water Plumes और Underwater Oceans की खोज की थी | यह एक बेहद ही बड़ी खोज थी जिसकी वजह से दुनियाभर के वैज्ञानिको का ध्यान इस छोटे से Icy Moon की ओर गया था | ऐसे में कई वैज्ञानिको का मानना था की इस ग्रह के Underwater समुद्रो में किसी प्रकार का Microbial Life भी मौजूद हो सकता है | जिसकी वजह से वैज्ञानिक नहीं चाहते थे की Potentially Earth Germs और Microbes से भरा हुआ Galileo Spacecraft – Jupiter ग्रह के Orbit में अनियंत्रित होकर जीवन से भरपूर Europa Moon से टकरा जाए |
ऐसे में वैज्ञानिको को Galileo Spacecraft को उसके Fuel के ख़त्म होने से पहले ही सावधानी पूर्वक Jupiter ग्रह के Atmosphere में Destroy करना था | ऐसे में वैज्ञानिको ने धीरे धीरे Galileo Spacecraft के Orbit को कम करना सुरु किया ताकि इसे Jupiter ग्रह के Atmosphere की ओर मोड़ा जा सके | और आखिरकार 2003 में यह Spacecraft – Jupiter ग्रह के Orbit में जलकर नष्ट हो गया | पर अपने अंतिम दौर में भी इसने Jupiter ग्रह के Atmosphere में गोता लगाते हुए उसके Magnetic Field , Radiation Belt और Charged Particles से जुडी हुई कई महत्वपूर्ण जानकारिया जुटाई |
2. Messenger Hits Mercury 2015
Mercury Planet हमारे सौरमंडल का सबसे छोटा और सूरज से सबसे समीप मौजूद ग्रह है अभी तक मानव इतिहास में केवल तीन ही Space Missions है जो की इस ग्रह के Flyby को अंजाम दे पाए है | NASA का Messenger , यानी की Mercury Surface, Space Environment, Geochemistry and Ranging मिशन इस ग्रह को Orbit में रहकर इसका अध्यन करने वाला पहला Mission था | इस Mission का मुख्य मकसद Mercury ग्रह के geology, magnetic fieldऔर chemical composition का करीबी से अध्यन करना था |
इस Mission को अगस्त 2004 में Launch किया गया था | धरती के एक , Venus ग्रह के दो और Mercury ग्रह के तीन Flybys को अंजाम देने के बाद यह मार्च 2011 में Mercury ग्रह के एक Stable Orbit में दाखिल हुआ | यह मिशन Mercury ग्रह के Orbit में रहकर करीब चार सालो तक इसके Geology , Surface , Composition और Magnetic Field का अध्यन करता रहा | पर 2014 अंत में इस मिशन से जुड़े हुए वैज्ञानिको ने Update दिया की अब यह Mission अपने अंतिम दौर में पहुंच चूका है | और आने वाले कुछ महीनो में इसका Fuel पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा और यह Mercury ग्रह के Surface से टकराकर नष्ट हो जाएगा |
और आखिरकार 30 April 2015 को Messenger Spacecraft का Fuel ख़त्म हो गया और यह करीब 14000 किलोमीटर प्रतिघंटे की Speed से Mercury ग्रह के Surface से जा टकराया | इस टककर की वजह से Mercury ग्रह के Surface पर एक विशालकाय Crater भी बन गया | पर सूरज के बेहद ही पास मौजूद होने की वजह से वैज्ञानिक धरती पर मौजूद Telescopes की मदद से इस Impact और Crater का अध्यन कर पाने में नाकाम रहे | पर वैज्ञानिको को उम्मीद है की 2018 में Launch किया गया Bepicolombo मिशन जो की 2025 में इस ग्रह के Orbit में पहुंचेगा | वह इस Impact Crater और उसके Surface का करीबी से अध्यन कर सकता है |
3. Cassini Hits Saturn 2017
Cassini Mission को अमेरिकी Space Agency – NASA, European Space Agency – ESA और Italian Space Agency के Joint Collaboration के अंतर्गत बनाया गया था | इस Mission का मुख्य उद्देश्य शनि ग्रह को Orbit करते हुए उसके Rings, Geology, Composition और उसके Moons का करीबी से अध्यन करना था |
Cassini Mission को उसके Huygens Probe के साथ 1997 में Launch किया गया था, करीब 7 सालो की लम्बी यात्रा और कई सारे Gravity Assits के बाद यह Spacecraft 2004 में शनि ग्रह के Orbit में सफलतापूर्वक दाखिल हुआ | यह Mission करीब 13 सालो तक शनि ग्रह और उसके Moons का अध्यन करता रहा जिस दौरान इसने शनि ग्रह और जीवन से भरपूर इसके Moons से जुडी कई महत्वपूर्ण खोजी की |जिसमे इसके Moon – Titan पर मौजूद Hydrocarbon Lakes और Enceladus में खोजा गया Water Plumes व Underwater Ocean प्रमुख है |
पर 2017 के अंत में वैज्ञानिको को यह आभास हो गया था की अब यह Mission अपने अंतिम दौर में है और इसमें केवल कुछ महीनो का ही Fuel बचा हुआ है | ऐसे में वैज्ञानिको को एक बेहद ही कठिन फैसला लेना था | जैसे की हमें पता है की Cassini Spacecraft Nuclear Energy से powered था , ऐसे में अगर यह ऐसे ही शनि ग्रह का चक्कर लगाता रहता तो हो सकता है की भविस्य में यह Spacecraft अपने रास्ते से भटक कर जीवन की शंभावनाओ से भरपूर शनि ग्रह के किसी Moons से टकरा जाता | जो की उस Moon पर मौजूद किसी प्रकार के Microbial life या Environment के लिए बेहद ही खतरनाक हो सकता था | ऐसे में वैज्ञानिको ने अपने इस प्यारे Spacecraft को शनि ग्रह के Atmosphere में हमेशा के लिए ख़त्म करने का बेहद ही कठिन फैसला लिया |
15 सितम्बर 2017 को Cassini Spacecraft ने शनि ग्रह की ओर अपना आखिरी सफर शुरू किया | इस समय Cassini शनि ग्रह के atmosphere में दाखिल हुआ पर कोई Scientific Mission के लिए नहीं बल्कि अपने आप को नष्ट करने के लिए | पर अपने आखिरी दौर में भी Cassini Spacecraft शनि ग्रह के atmosphere से जुडी जरुरी जानकारिया धरती तक भेजता रहा | पर आखिरकार इसका Antenna भी नष्ट हो गया और पूरा Spacecraft जलकर शनि ग्रह के Atmosphere में शमा गया बिलकुल धरती पर होने वाले Meteor Shower की तरह |
4. Deep Impact Hits Comet Tempel 1 – 2005
2005 में NASA ने Tempel 1 नाम के Comet का अध्यन करने के लिए अपना 372 किलोग्राम वजनी Spacecraft उसमे Crash कर दिया था | Comets को वैज्ञानिक एक Time Capsule भी मानते है जो की असल में हमारे सौरमंडल के निर्माण के समय बचे हुए Space Bodies है | ये बिना किसी बड़े Changes के कई Billion सालो से हमारे सौरमंडल में इधर उधर घूम रहे है |
हम इनके Surface Composition और Structure का अध्यन कर हमारे सौरमंडल की शुरुआत और ग्रहो के निर्माण के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारिया जुटा सकते है | ऐसे में NASA के वैज्ञानिको ने अध्यन करने के लिए करीब 8 किलोमीटर विशालकाय Temple1 Comet को चूना |
इस Mission में मुख्य रूप से 2 अलग अलग Component मौजूद थे, जिसमे से पहला एक 372 किलोग्राम वजनी Impactor था जो की Comet पर Crash होता | और वही दूसरा एक Spacecraft था जो की Impact की तस्वीरें लेता और इसमें मौजूद Spectrometer – Impact के बाद निकले Dust का अध्यन कर जानकारिया धरती पर मौजूद वैज्ञानिको तक भेजता |
Deep Impact Mission को NASA ने जनवरी 2005 में Launch किया था | करीब 5 महीनो की यात्रा के बाद June 2005 में Deep Impact Spacecraft – Tempel 1 Comet के करीब पंहुचा और आखिरकार July 2005 में इसका 372 किलोग्राम वजनी Impactor – Comet में Crash हो गया | इस Impact की वजह से Tempel 1 Comet के Surface पर करीब 150 मीटर चौड़ा और 30 मीटर गहरा Crater बन गया और साथ ही इस टककर की वजह से बड़ी मात्रा में Space Dust भी निकला | मुख्य Spacecraft ने इस Impact और Crater की कई तस्वीरें ली और साथ ही इसमें मौजूद Spectrometer Instrument ने Impact के बाद निकले Dust Particles में Silicates, Carbonates, Smectite, Metal sulfides और Water Ice की खोज की |
5. Lcross Hits Moon – 2009
Lunar Crater Observation and Sensing Satellite यानी Lcross के अंतर्गत October 2009 में पहले इसका Rocket Booster और फिर मुख्य Spacecraft – Moon के Surface से टकरा गया | इस Mission का मकशद Moon के South Pole में मौजूद Lunar Polar Region के Geology और वहा मौजूद Water Ice का अध्यन करना था |
शुरुआती अध्यनो में Moon के South Pole में बड़ी मात्रा में Water Ice और Hydrogen के सबूत मिले थे जो की भविस्य में Moon को Colonize करने में एक महत्वपूर्ण योगदान निभा सकता थे | पर हमें इस Region का और भी अच्छे तरीके से अध्यन करने के जरुरत थी जिसकी वजह से NASA ने Lcross Mission को design किया जो की मुख्य रूप से एक Impact Mission था | इसके अंतर्गत सबसे पहले इसका Rocket Booster – Moon के Surface में Crash होता जिसकी वजह से इसके Surface में एक Crater बन जाता और बड़ी मात्रा में Dust और Rocks इसके Surface से निकलते | जिसके बाद इसके मुख्य Spacecraft में मौजूद Instruments – Impact के बाद निकले Dust Particles का करीबी से अध्यन करता और फिर वो भी Moon के Surface पर Crash हो जाता |
Lcross मिशन को नासा के Lunar Reconnaissance Orbiter के साथ June 2009 में लांच किया गया था | Orbit में कुछ समय बिताने के बाद 9 October 2009 को Lcross मिशन का Rocket Booster सबसे पहले Moon के South Pole में मौजूद Cabeus Crater नामक जगह पर Crash हुआ | इसने इस जगह पर करीब 30 मीटर चौड़ा और 5 मीटर गहरा Crater बना दिया और साथ ही इस Impact की वजह से इसके Surface से बड़ी मात्रा में Dust भी निकला | Rocket Booster के Surface में टकराने के करीब 4 मिनट बाद इसके मुख्य Spacecraft ने इस Dust के बादल में गोता लगाया और इसके Composition का अध्यन कर जरुरी जानकारिया धरती पर मौजूद वैज्ञानिको तक भेजी | जिसके बाद यह खुद भी Moon के Surface में Crash हो गया और इस मिशन का अंत हो गया |
भविस्य में NASA का Double Asteroid Redirection Test यानी की DART Mission इस सूचि में अपना नाम जोड़ेगा | यह मुख्य रूप से एक Asteroid Redirection मिशन है जिसके अंतर्गत NASA के वैज्ञानिक इस Spacecraft को Didymos नाम के Asteroid में Crash करेंगे और फिर इसके Orbit में हुए Changes का अध्यन करेंगे | ताकि भविस्य में किसी विशालकाय Asteroid के हमारे धरती से टकराने की स्तिथि में वैज्ञानिक इस मिशन के जरिये उस Asteroid के Path को Change कर सके | इस Mission को 24 नवम्बर 2021 को Launch किया जा चूका है जो की 26 सितम्बर से 1 अक्टूबर 2022 के बीच Didymos Asteroid से करीब 24000 किलोमीटर प्रतिघंटे की तेज रफ़्तार से टकराएगा |